हर मुश्किल दा हल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा हल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा हल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
गुरुसिख गुरु दा फड़दा जो पल्ला
पहरेदार वांग ओहदा पहरा देवे अल्लाह
भगतां दा राखा हल पर सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा हल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा ….
इस दे हुकम नाल कम्म होण सारे
इस दी रज़ा बिन कौण है जो मारे
होण वाली जाने हर गल्ल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा हल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा ……
आप ही समेत दा ते आप्प्पे खेडां पावे
अस्सी नादान सानू समझ ना आवे
जल सतगुरु है थल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा हल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा ……
किश्ती किनारा मल्लाह सतगुरु है
अनथक डरे क्यूँ जिहदा सतगुरु है
सागर है सतगुरु, छल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा हल सतगुरु है
कल वी सतगुरु सी अज्ज वी सतगुरु है
हर मुश्किल दा ……
Nirankari Bhajan in Hindi & Punjabi
Nirankari Geet, Bhajan, Lyrics in Hindi & Punjabi...
Tuesday, October 1, 2024
Har Mushkil Da Hal Sataguru Hai हर मुश्किल दा हल सतगुरु है, निरंकारी गीत, Nirankari Bhajan Song
Thursday, July 11, 2024
Bhagwan ka Shukrana
|| बहुत सुंदर लेख है ||
!! हे परमेश्वरा !!
कोई भी आवेदन नहीं किया था,
किसी की भी सिफारिश नहीं थी,
फिर भी सिर के *बालों से* लेकर पैर के *अंगूठे तक* 24 घंटे भगवान,
आप *रक्त* प्रवाहित करते है...
*जीभ पर* नियमित अभिषेक हो रहा है...
निरंतर आप मेरा ये
*हृदय* चला रहे है...
चलने वाला ये कौन सा *यंत्र* आपने फिट कर दिया है *हे भगवान...*
*पैर के नाखून से लेकर सिर के बालों तक बिना रुकावट संदेशवाहन करने वाली प्रणाली...*
किस *अदृश्य शक्ति* से चल रही है
कुछ समझ नहीं आता।
*हड्डियों और मांस में* बनने वाला *रक्त* कौन सा अद्वितीय *आर्किटेक्चर* है...
इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं है।
*हजार-हजार मेगापिक्सल वाले दो-दो कैमरे* दिन-रात सारी दृश्यें कैद कर रहे हैं।
*दस-दस हजार* टेस्ट करने वाली *जीभ* नाम की टेस्टर,
अनगिनत *संवेदनाओं* का अनुभव कराने वाली *त्वचा* नाम की *सेंसर प्रणाली*...
और...
अलग-अलग *फ्रीक्वेंसी की* आवाज पैदा करने वाली *स्वर प्रणाली*
और
उन फ्रीक्वेंसी का *कोडिंग-डीकोडिंग* करने वाले *कान* नाम का यंत्र...
*पचहत्तर प्रतिशत पानी से भरा शरीर रूपी टैंकर हजारों छेद होने के बावजूद कहीं भी लीक नहीं होता...*
*स्टैंड के बिना* मैं खड़ा रह सकता हूँ...
गाड़ी के *टायर* घिसते हैं, परंतु पैर के *तलवे* कभी नहीं घिसते।
*अद्भुत* ऐसी रचना है ,भगवान आपकी।
देखभाल, स्मृति, शक्ति, शांति ये सब भगवान आप
ही देते है।
आप ही अंदर बैठ कर यह *शरीर* चला रहे है।
*अद्भुत* है यह सब, *अविश्वसनीय,*
*असमझनीय।*
ऐसे *शरीर रूपी* मशीन में हमेशा भगवान आप ही हो ,
इसका अनुभव कराने वाली *आत्मा* भगवान आपने ऐसा कुछ *फिट* कर दिया है कि और क्या आपसे मांगू ...
आपके इस *जीवाशिवा* के खेल का निश्छल,
*निस्वार्थ आनंद* का हिस्सा रहूँ!...
ऐसी *सद्बुद्धि* मुझे दे!!
आप ही यह सब संभालते है इसका *अनुभव* मुझे हमेशा रहे!!!
*रोज पल-पल कृतज्ञता से आपका ऋणी होने का स्मरण, चिंतन हो,*
*यही परमेश्वर के चरणों में प्रार्थना है!*.
🕉️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🕉️🌹
Tuesday, May 14, 2024
जब हिंदुस्तान में नई-नई रेलगाड़ी (Train) चलाई तो एक डेरे के बाबा जी रोजाना रेलगाड़ी क्यूं देखने जाते थे?
अंग्रेजों ने जब हिंदुस्तान में नई-नई रेलगाड़ी (Train) चलाई तो एक डेरे के बाबा जी रोजाना रेलगाड़ी देखने जाते थे। एक दिन डेरे के सेवादारों ने पूछ लिया कि आप रोज Train देखने क्यों जाते हो ? 🤔
बाबा जी ने जवाब दिया कि "मुझे रेलगाड़ी के Engine से प्यार हो गया है।" ❤️
सेवादारों ने पूछा, "प्यार क्यों हो गया है?
बाबा जी बोले, "इस की कुछ खास वजह है।
पहली वजह यह है कि Train का इंजन अपनी मंजिल पर पहुंच कर ही रुकता है।
दूसरी वजह यह है कि इंजन अपने हर डिब्बे को साथ लेकर चलता है।
तीसरी वजह यह है कि इंजन आग खुद खाता है और डिब्बों को खाने नहीं देता है।
चौथी वजह यह है कि इंजन अपने तय रास्ते से भटकता नहीं है।
पांचवीं और आखिरी वजह यह है कि इंजन डिब्बों का मोहताज नहीं है। 🤷♂️
परिवार के मुखिया (Leaders) को भी रेलगाड़ी के Engine जैसा होना चाहिए। 🙇🏻♂️🤗
Wednesday, April 10, 2024
Oneness Talks Program 11 April 2024, Nirankari Sarovar Delhi
धन निरंकार जी
सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की असीम कृपा और दृष्टि के अनुपम उपहार - *Oneness Talks का अगला सत्र वीरवार, 11 अप्रैल 2024 को शाम 6.30 बजे से 9 बजे तक निरंकारी सरोवर, दिल्ली के दिव्य प्रांगण में आयोजित किया जा रहा है।*
इस बार भी हम Greek Philosophy (यूनानी दर्शन) पर परिचर्चा करते हुए उसकी सामयिक प्रासंगिकता पर विवेचन करेंगे। *सुकरात, प्लेटो, डायोजीनीज़ और अरस्तू जैसे दार्शनिकों के जीवन की कथा कहानियों के साथ साथ अनेक संदेश भी साझा होंगे।*
“*मन के भीतर का बचपन”, “जीवन की क्षणभंगुरता” और “वर्तमान में आनंद के महत्व” जैसे विषयों पर ज्ञान वर्धक चर्चा* के लिए अवश्य पधारें और ईद के मुबारक मौक़े को मुकम्मल बनायें।
सभी का हार्दिक स्वागत है । अपने साथ एक पेन अवश्य लेकर आयें।
प्रचार विभाग
संत निरंकारी मंडल 🙏🏼😊
Sunday, November 25, 2018
71वें निरंकारी संत समागम स्थल पर निरंकारी प्रदर्शनी का हुआ उद्घाटन
71वें वार्षिक निरंकारी संत समागम स्थल समालखा में निरंकारी सद्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने माता सविंदर जी के जीवन को समर्पित निंरकारी प्रदर्शनी का उद्घाटन आज अपने कर कमलों द्वारा किया। इस प्रदर्शनी के चार भाग हैं-निरंकारी प्रदर्शनी, बाल प्रदर्शनी, स्वास्थ्य प्रदर्शनी व सन्त निरंकारी चेरिटेबल फाउंडेशन प्रदर्शनी। इस वर्ष निरंकारी प्रर्दशनी का मुख्य भाव मां सविंदर- एक रोशन सफर है। प्रर्दशनी में माता सविंदर जी के सहज, दिव्य व समर्पित गुणों को उजागर किया गया है। प्रदर्शनी में उनके जीवन के भिन्न-भिन्न पहलू फोटो, चित्रों तथा कट-आउट द्वारा दिखाए गए हैं।
Tuesday, November 13, 2018
निधिवन ... वृंदावन
♻ एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु की सुनाई हुई भागवत कथा से इतना मोहित हुआ कि वह हर समय वृन्दावन आने की सोचने लगा उसके गुरु उसे निधिवन के बारे में बताया करते थे और कहते थे कि आज भी भगवान यहाँ रात्रि को रास रचाने आते है उस भक्त को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय किया कि वृन्दावन जाऊंगा और ऐसा ही हुआ श्री राधा रानी की कृपा हुई और आ गया वृन्दावन उसने जी भर कर बिहारी जी का राधा रानी का दर्शन किया लेकिन अब भी उसे इस बात का यकीन नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास रचाते है उसने सोचा कि एक दिन निधिवन रुक कर देखता हू इसलिए वो वही पर रूक गया और देर तक बैठा रहा और जब शाम होने को आई तब एक पेड़ की लता की आड़ में छिप गया
♻ जब शाम के वक़्त वहा के पुजारी निधिवन को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस भक्त पर पड गयी और उसे वहा से जाने को कहा तब तो वो भक्त वहा से चला गया लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप गया और फिर से शाम होते ही पुजारियों द्वारा निकाला गया और आखिर में उसने निधिवन में एक ऐसा कोना खोज निकाला जहा उसे कोई न ढूंढ़ सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात वही निधिवन में बैठा रहा और अगले दिन जब सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है और उसके मुह से झाग निकल रहा है
♻ तब उन सेविकाओ ने सभी को बताया तो लोगो कि भीड़ वहा पर जमा हो गयी सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और ऐसे ही वो ३ दिन तक बिना कुछ खाएपीये ऐसे ही बेसुध पड़ा रहा और ५ दिन बाद उसके गुरु जो कि गोवर्धन में रहते थे बताया गया तब उसके गुरूजी वहा पहुचे और उसे गोवर्धन अपने आश्रम में ले आये आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा और एक दिन सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से लिखने के लिए कलम और कागज़ माँगा गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने चले गए जब गुरूजी स्नान करके आश्रममें आये पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग कर अपना शरीर त्याग दिया थाऔर उस कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था उस पर लिखा था-
♻ "गुरूजी मैंने यह बात किसी को भी नहीं बताई है,पहले सिर्फ आपको ही बताना चाहता हू ,आप कहते थे न कि निधिवन में आज भी भगवान रास रचाने आते है और मैं आपकी कही बात पर यकीन नहीं करता था, लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात बांके बिहारी का राधा रानी के साथ गोपियों के साथ रास रचाते हुए दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोईभी इच्छा नहीं है ,इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने प्राप्त कर लिया है और अब मैं जीकर करूँगा भी क्या?
♻ श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है,इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिये"
♻ वो पत्र जो उस भक्त ने अपने गुरु के लिए लिखा था आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में रखा हुआ है और बंगाली भाषा में लिखा हुआ है
♻ कहा जाता है निधिवन के सारी लताये गोपियाँ है जो एक दूसरे कि बाहों में बाहें डाले खड़ी है जब रात में निधिवन में राधा रानी जी, बिहारी जी के साथ रास लीला करती है तो वहाँ की लताये गोपियाँ बन जाती है, और फिर रास लीला आरंभ होती है,इस रास लीला को कोई नहीं देख सकता,दिन भर में हजारों बंदर, पक्षी,जीव जंतु निधिवन में रहते है पर जैसे ही शाम होती है,सब जीव जंतु बंदर अपने आप निधिवन में चले जाते है एक परिंदा भी फिर वहाँ पर नहीं रुकता यहाँ तक कि जमीन के अंदर के जीव चीटी आदि भी जमीन के अंदर चले जाते है रास लीला को कोई नहीं देख सकता क्योकि रास लीला इस लौकिक जगत की लीला नहीं है रास तो अलौकिक जगत की "परम दिव्यातिदिव्य लीला" है कोई साधारण व्यक्ति या जीव अपनी आँखों से देख ही नहीं सकता. जो बड़े बड़े संत है उन्हें निधिवन से राधारानी जी और गोपियों के नुपुर की ध्वनि सुनी है.
♻ जब रास करते करते राधा रानी जी थक जाती है तो बिहारी जी उनके चरण दबाते है. और रात्रि में शयन करते है आज भी निधिवन में शयन कक्ष है जहाँ पुजारी जी जल का पात्र, पान,फुल और प्रसाद रखते है, और जब सुबह पट खोलते है तो जल पीला मिलता है पान चबाया हुआ मिलता है और फूल बिखरे हुए मिलते है. राधे..........राधे..........
श्रीकृष्ण भक्त पागल बाबा
एक पंडितजी थे, वो श्रीबांके बिहारी लाल को बहुत मानते थे, सुबह-शाम बस ठाकुरजी ~ ठाकुरजी करके ही उनका समय व्यतीत होता..||
पारिवारिक समस्या के कारण उन्हें धन की आवश्यकता हुई.. तो पंडितजी सेठ जी के पास धन मांगने गये.. सेठ जी धन दे तो दिया, पर उस धन को लौटाने की बारह किस्त बांध दी.. पंडितजी को कोई एतराज ना हुआ.. उन्होंने स्वीकृति प्रदान कर दी..||
:
अब धीरे-धीरे पंडितजी ने ११ किस्त भर दीं एक किस्त ना भर सके.. इस पर सेठ जी १२ वीं किस्त के समय निकल जाने पर पूरे धन का मुकद्दमा पंडितजी पर लगा दिया..||
:
कोर्ट-कचहरी हो गयी.. जज साहब बोले: पंडितजी तुम्हारी तरफ से कौन गवाही देगा.. इस पर पंडितजी बोले कि मेरे ठाकुर बांकेबिहारी लाल जी गवाही देंगे.. पूरा कोर्ट ठहाकों से भर गया.. अब गवाही की तारीख तय हो गयी..||
पंडितजी ने अपनी अर्जी ठाकुरजी के श्रीचरणों में लिखकर रख दी, अब गवाही का दिन आया कोर्ट सजा हुआ था, वकील-जज अपनी दलीलें पेश कर रहे थे.. पंडित को ठाकुरजी पर भरोसा था..||
:
जज ने कहा: पंडित अपने गवाह को बुलाओ, पंडित ने ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगाया, तभी वहाँ एक वृद्व आया.. जिसके चेहरे पर मनोरम तेज था, उसने आते ही गवाही पंडितजी के पक्ष में दे दी.. वृद्व की दलीलें सेठ के वहीखाते से मेल खाती थीं कि फलां-फलां तारीख को किश्तें चुकाई गयीं।
:
अब पंडित को ससम्मान रिहा कर दिया गया.. ततपश्चात जज साहब पंडित से बोले कि ये वृद्व जन कौन थे, जो गवाही देकर चले गये.. तो पंडित बोला: अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर था..||
:
जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया.. इतना सुनना था की जज पंडित जी के चरणों में लेट गया.. और ठाकुरजी का पता पूछा.. पंडित बोला मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है.. वो हर जगह है, अब जज ने घरबार काम धंधा सब छोङ ठाकुर को ढूंढने निकल पङा.. सालों बीत गये पर ठाकुर ना मिला..||
अब जज पागल-सा मैला कुचैला हो गया, वह भंडारों में जाता पत्तलों पर से जुठन उठाता.. उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी मूर्ति को अर्पित करता और आधा खुद खाता.. इसे देख कर लोग उसके खिलाफ हो गये, उसे मारते पीटते.. पर वो ना सुधरा, जूठन बटोर कर खाता और खिलाता रहा..||
:
एक भंडारे में लोगों ने अपनी पत्तलों में कुछ ना छोङा, ताकी ये पागल ठाकुरजी को जूठन ना खिला सके.. पर उसने फिर भी सभी पत्तलों को पोंछ-पाछकर एक निवाल इकट्ठा किया और अपने मुख में डाल लिया..||
:
पर अरे ये क्या, वो ठाकुर को खिलाना तो भूल ही गया, अब क्या करे.. उसने वो निवाला अन्दर ना सटका की पहले मैं खा लूंगा तो ठाकुर का अपमान हो जायेगा और थूका तो अन्न का अपमान होगा..||
:
करे तो क्या करें निवाल मुँह में लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगा रहा था कि एक सुंदर ललाट चेहरा लिये बाल-गोपाल स्वरूप में बच्चा पागल जज के पास आया और बोला: क्यों जज साहब, आज मेरा भोजन कहाँ है.. जज साहब मन ही मन गोपाल छवि निहारते हुये अश्रू धारा के साथ बोले: ठाकुर बङी गलती हुई, आज जो पहले तुझे भोजन ना करा सका..||
:
पर अब क्या करुं..??
:
तो मन मोहन ठाकुर जी मुस्करा के बोले अरे जज तू तो निरा पागल हो गया है रे जब से अब तक मुझे दूसरों का जूठन खिलाता रहा..||
:
आज अपना जूठन खिलाने में इतना संकोच चल निकाल निवाले को आज तेरी जूठन सही..||
:
जज की आंखों से अविरल धारा निकल पङी जो रुकने का नाम ना ले रही और मेरा ठाकुर मेरा ठाकुर कहता-कहता बाल गोपाल के श्रीचरणों में गिर पङा और वहीं देह का त्याग कर दिया..||
:
और मित्रों वो पागल जज कोई और नहीं वही (पागल बाबा) थे, जिनका विशाल मंदिर आज वृन्दावन में स्थित है..
||
भाव के भूखें हैं प्रभू और भाव ही एक सार है -
और भावना से जो भजे तो भव से बेङा पार है..||
||
गोवर्धनजी पर्वत की परिक्रमा क्यों?
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को भगवान का रूप बताया है और उसी की पूजा करने के लिए सभी को प्रेरित किया था।
आज भी गोवर्धन पर्वत चमत्कारी है और वहां जाने वाले हर व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने वाले हर व्यक्ति को जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है।
.
एक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेने के पूर्व राधाजी से भी साथ चलने का निवेदन किया।
इस पर राधाजी ने कहा कि मेरा मन पृथ्वी पर वृंदावन, यमुना और गोवर्धन पर्वत के बिना नहीं लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने हृदय की ओर दृष्टि डाली जिससे एक तेज निकल कर रास भूमि पर जा गिरा। यही तेज पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया।
.
शास्त्रों के अनुसार यह पर्वत रत्नमय, झरनों, कदम्ब आदि वृक्षों से भरा हुआ था एवं कई अन्य सामग्री भी इसमें उपलब्ध थी।
इसे देखकर राधाजी प्रसन्न हुई तथा श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने भी पृथ्वी पर अवतार धारण किया।
.
कभी विचार किया है कि हम श्रीगिरिराजजी की परिक्रमा क्यों करते हैं?
अज्ञानता अथवा अनभिज्ञता से किया हुआ अलौकिक कार्य भी सुन्दर फल का ही दाता है, तो यदि उसका स्वरूप एवं भाव समझकर हम कोई अलौकिक कार्य करें, तो उसके बाह्याभ्यान्तर फल कितना सुन्दर होगा, यह विचारणीय है।
.
परिक्रमा का भाव समझिये। हम जिसकी परिक्रमा कर रहें हों, उसके चारों ओर घूमते हैं।
जब किसी वस्तु पर मन को केन्द्रित करना होता है, तो उसे मध्य में रखा जाता है, वही केन्द्र बिन्दु होता है। अर्थात् जब हम श्रीगिरिराजजी की परिक्रमा करते हैं तो हम उन्हें मध्य में रखकर यह बताते हैं कि हमारे ध्यान का पूरा केन्द्र आप ही हैं और हमारे चित्त की वृत्ति आप में ही है और सदा रहे। दूसरा भावात्मक पक्ष यह भी है कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो उसके चारों ओर घूमना हमें अच्छा लगता है, सुखकारी लगता है।
.
श्रीगिरिराजजी के चारों ओर घूमकर हम उनके प्रति अपने प्रेम और समर्पण का भी प्रदर्शन करते हैं। परिक्रमा का एक कारण यह भी है कि श्रीगिरिराजजी के चारों ओर सभी स्थलों पर श्रीठाकुरजी ने अनेक लीलायें की हैं जिनका भ्रमण करने से हमें उनकी लीलाओं का अनुसंधान रहता है।
.
परिक्रमा के चार मुख्य नियम होते हैं जिनका पालन करने से परिक्रमा अधिक फलकारी बनती है।
.
“मुखे भग्वन्नामः,
हृदि भगवद्रूपम्,
हस्तौ अगलितं फलम्, नवमासगर्भवतीवत् चलनम्”
.
अर्थात्, मुख में सतत् भगवत्-नाम, हृदय में प्रभु के स्वरूप का ही चिंतन, दोनों हाथों में प्रभु को समर्पित करने योग्य ताजा फल,
और नौ मास का गर्भ धारण किये हुई स्त्री जैसी चाल, ताकि अधिक से अधिक समय हम प्रभु की टहल और चिंतन में व्यतीत कर सकें।
.
श्रीगिरिराजजी पाँच स्वरूप से हमें अनुभव करा सकते हैं, दर्शन देते हैं। पर्वत रूप में, सफेद सर्प के रूप में, सात बरस के ग्वाल/बालक के रूप में, गाय के रूप में और सिंह के रूप में।
.
श्रीगिरिराजजी का ऐसा सुन्दर और अद्भुत स्वरूप है कि इसे जानने के बाद कौन यह नहीं गाना चाहेगा कि “गोवर्धन की रहिये तरहटी श्री गोवर्धन की रहिये…”।
.
श्री श्रीनाथजी व् श्री गिरिराज जी दोनों एक ही है ।
🎋श्री गिरिराज धारण जी की जय🎋
आज भी गोवर्धन पर्वत चमत्कारी है और वहां जाने वाले हर व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने वाले हर व्यक्ति को जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है।
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एक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेने के पूर्व राधाजी से भी साथ चलने का निवेदन किया।
इस पर राधाजी ने कहा कि मेरा मन पृथ्वी पर वृंदावन, यमुना और गोवर्धन पर्वत के बिना नहीं लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने हृदय की ओर दृष्टि डाली जिससे एक तेज निकल कर रास भूमि पर जा गिरा। यही तेज पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया।
.
शास्त्रों के अनुसार यह पर्वत रत्नमय, झरनों, कदम्ब आदि वृक्षों से भरा हुआ था एवं कई अन्य सामग्री भी इसमें उपलब्ध थी।
इसे देखकर राधाजी प्रसन्न हुई तथा श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने भी पृथ्वी पर अवतार धारण किया।
.
कभी विचार किया है कि हम श्रीगिरिराजजी की परिक्रमा क्यों करते हैं?
अज्ञानता अथवा अनभिज्ञता से किया हुआ अलौकिक कार्य भी सुन्दर फल का ही दाता है, तो यदि उसका स्वरूप एवं भाव समझकर हम कोई अलौकिक कार्य करें, तो उसके बाह्याभ्यान्तर फल कितना सुन्दर होगा, यह विचारणीय है।
.
परिक्रमा का भाव समझिये। हम जिसकी परिक्रमा कर रहें हों, उसके चारों ओर घूमते हैं।
जब किसी वस्तु पर मन को केन्द्रित करना होता है, तो उसे मध्य में रखा जाता है, वही केन्द्र बिन्दु होता है। अर्थात् जब हम श्रीगिरिराजजी की परिक्रमा करते हैं तो हम उन्हें मध्य में रखकर यह बताते हैं कि हमारे ध्यान का पूरा केन्द्र आप ही हैं और हमारे चित्त की वृत्ति आप में ही है और सदा रहे। दूसरा भावात्मक पक्ष यह भी है कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो उसके चारों ओर घूमना हमें अच्छा लगता है, सुखकारी लगता है।
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श्रीगिरिराजजी के चारों ओर घूमकर हम उनके प्रति अपने प्रेम और समर्पण का भी प्रदर्शन करते हैं। परिक्रमा का एक कारण यह भी है कि श्रीगिरिराजजी के चारों ओर सभी स्थलों पर श्रीठाकुरजी ने अनेक लीलायें की हैं जिनका भ्रमण करने से हमें उनकी लीलाओं का अनुसंधान रहता है।
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परिक्रमा के चार मुख्य नियम होते हैं जिनका पालन करने से परिक्रमा अधिक फलकारी बनती है।
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“मुखे भग्वन्नामः,
हृदि भगवद्रूपम्,
हस्तौ अगलितं फलम्, नवमासगर्भवतीवत् चलनम्”
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अर्थात्, मुख में सतत् भगवत्-नाम, हृदय में प्रभु के स्वरूप का ही चिंतन, दोनों हाथों में प्रभु को समर्पित करने योग्य ताजा फल,
और नौ मास का गर्भ धारण किये हुई स्त्री जैसी चाल, ताकि अधिक से अधिक समय हम प्रभु की टहल और चिंतन में व्यतीत कर सकें।
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श्रीगिरिराजजी पाँच स्वरूप से हमें अनुभव करा सकते हैं, दर्शन देते हैं। पर्वत रूप में, सफेद सर्प के रूप में, सात बरस के ग्वाल/बालक के रूप में, गाय के रूप में और सिंह के रूप में।
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श्रीगिरिराजजी का ऐसा सुन्दर और अद्भुत स्वरूप है कि इसे जानने के बाद कौन यह नहीं गाना चाहेगा कि “गोवर्धन की रहिये तरहटी श्री गोवर्धन की रहिये…”।
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श्री श्रीनाथजी व् श्री गिरिराज जी दोनों एक ही है ।
🎋श्री गिरिराज धारण जी की जय🎋
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