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Tuesday, September 5, 2017

दीवार रहित संसार

ढूंढोगे अगर तो ही रास्ते मिलेंगे.....
मंजिलों की फ़ितरत है खुद चलकर नही आती।

रास्ता तो पता चल ही चुका है सतगुरु की अपार किरपा से इस परम पिता परमात्मा तक पहुचने का,और मंजिल भी हमे मालूम है कहाँ जाना है,लेकिन मंजिल पर तो तभी पहुचेंगे न जब हम चलना शरू करेंगे,क्योंकि जो चलता है वही तो पहुचता है।कदम बढ़ाए बिना तो हमारी अवस्था उसी नाव की तरह है जो पानी मे तो है,और मांझी पतवार से पानी को धकेल भी रहा है,लेकिन फिर भी आगे नही बढ़ रहे हैं,क्योंकि नाव का एक सिरा किनारे पर बंधा हुआ है।जब तक इस सिरे को खोलेंगे नही तब तक कहाँ आगे बढ़ पाएंगे अपनी मंजिल की तरफ....

सतगुरू के बताए हुए रास्ते पर चलते रहें,जो प्रेम वाला है,प्रीत वाला है,नम्रता सहनशीलता भाईचारे,वाला है,जहां हर कोई अपना है,जहां किसी से वैर नही जहां किसी से शिकायत नही,किसी के लिए मन मे खराब नियत नही,,,,,,बस है तो केवल एक भावना जो ये बताती है कि हम सब एक ही पिता की संतान है,और हमे साथ मिलकर रहना है,एक दूसरे से प्रेम आदर और सत्कार देते हुए एक दूसरे की भावना को समझना है,तभी सतगुरू बाबाजी का दीवार रहित संसार का सपना साकार होगा।जिन्होंने अपना पूरा जीवन हमे सुधारने में लगा दिया,लेकिन हम शायद अपनी नादानियों में ही रह गए।

🙏 धन निरंकार जी 🙏

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