सन्त महापुरुषों की शरण संगति में आने से उनके पावन सत्संग से जीव की किस्मत सँवर जाती है।
एक बार दशम पादशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का दरबार सजा हुआ था कर्म फल के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो प्रारब्ध है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है। वचनों के पश्चात श्री मौज उठी कि जिस किसी को जो वस्तु की आवश्यकता हो वह निःसंकोच होकर माँग सकता है उसे हम आज पूरा करेंगे। एक श्रद्धालु ने हाथ जोड़ कर विनय की कि प्रभो मैं बहुत गरीब हूँ मेरी तमन्ना है कि मेरे पास बहुत सा धन हो जिससे मेरा गुज़ारा भी चल सके और साधु सन्तों की सेवा भी कर सकूँ उसकी भावना को देखकर श्री गुरुमहाराज जी ने शुभ आशीर्वाद दिया कि तुझे लखपति बनाया। दूसरे भक्त ने खड़े होकर हाथ जोड़कर विनय की श्री गुरुमहाराज जी ने पूछा क्यों भई तुम्हें धन की आवश्यकता है? उसने विनय की कि भगवन नहीं मेरे पास आपका दिया हुआ सब कुछ है लेकिन उसको सँभालने वाला नहीं है अर्थात पुत्र नहीं है।
आशीर्वाद दिया कि मैं अपने चार कुर्बान कर दूँगा तुझे चार दिये उसी गुरुमुख मण्डली में सत्संग में एक फकीर शाह रायबुलारदीन भी बैठे थे उसकी उत्सुकता को देखकर अन्तर्यामी गुरुदेव ने पूछा राय बुलारदीन आपको भी कुछ आवश्यकता हो तो निसन्देह निसंकोच होकर कहो। उसने हाथ जोड़ कर खड़े होकर विनय की कि प्रभो मुझे तो किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना नहीं है परन्तु मेरे मन में एक सन्देह उत्पन्न हो गया हैअगर आपकी कृपा हो तो मेरा सन्देह दूर कर दें।श्री वचन हुये कि सन्तमहापुरुषों की शरण में आकर जीव के संशय भ्रम दूर नहीं होंगे तो कहाँ होंगे,इसलिये अपना सन्देह हमें बताओ उसे अवश्य दूर करेंगे। वेनती की कि प्रभो अभी अभी आपने वचन फरमाये हैं कि प्रारब्ध से कम या अधिक किसी को नहीं मिलता अपने कर्मों का फल प्रत्येक जीव को भुगतना ही पड़ता है तो मेरे मन में सन्देह हुआ कि अभी जिसे आपने लखपति होने का आशीर्वाद दिया है
एक को चार पुत्र प्रदान किये हैं जब इनकी तकदीर में नहीं है तो आपने कहां से दे दिये?श्री गुरुमहाराज अति प्रसन्न हुये फरमाया रायबुलारदीन ये तेरा संशय नहीं है इन सबका संशय है आज सब के संशय भ्रम दूर हो जायेंगे।श्री गुरुमहाराज जी ने सेवक द्वारा एक कोरा कागज़ मोहर वाली स्याही मँगवाई और अपनी अँगुली की छाप(अँगूठी)उतार कर रायबुलारदीन से फरमाया कि बताओ इस अँगूठी के अक्षर उल्टे हैं कि सीधे?उसने उत्तर दिया कि उल्टे हैं सच्चे पादशाह। फिर स्याही में डुबो कर कोरे कागज़ पर मोहर छाप दी।अब पूछा बताओअक्षर उल्टे हुये है कि सीधे।उत्तर दिया कि महाराज अब सीधे हो गये हैं।श्री वचन हुये कि तुम्हारे प्रश्न का तुम्हें उत्तर दे दिया गया है।उसने विनय की भगवन मेरी समझ में कुछ नहींआया।श्री गुरु महाराज जी ने फरमाया जिस प्रकार छाप के अक्षर उल्टे थे लेकिन स्याही लगाने से छापने पर वह सीधे हो गये हैं।
इसी तरह ही जिस जीव के भाग्य उल्टे हों और अगर उसके मस्तक पर सन्त सतगुरु के चरण कमल की छाप लग जाये तो उसके भाग्य सीधे हो जाते हैं। सन्त महापुरुषों की शरण में आने से जीव की किस्मत पल्टा खा जाती है।भाग्य सितारा चमक जाता है।कहते हैं ब्राहृा जी ने चार वेद रचे इसके बाद जो स्याही बच गई वे उसे लेकर भगवान के पास गये उनसे प्रार्थना की कि इस स्याही का क्या करना है? भगवान ने कहा इस स्याही को ले जाकर सन्तों के हवाले कर दो उनकोअधिकार है कि वे लिखें या मिटा दें या जिस की किस्मत में जो लिखना चाहें लिख दें।
इसलिये जो सौभाग्यशाली जीव सतगुरु की चरण शरण में आ जाते हैं सतगुरु के चरणों कोअपने मस्तक पर धारण करते हैं सभी कार्य उनकी आज्ञा मौजानुसार निष्काम भाव से सेवा करते हैं सुमिरण करते हैं निःसन्देह यहाँ भी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैंऔर कर्म बन्धन से छूटकर आवागमन के चक्र से आज़ाद होकर मालिक के सच्चे धाम को प्राप्त करते हैं।
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एक बार दशम पादशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का दरबार सजा हुआ था कर्म फल के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो प्रारब्ध है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है। वचनों के पश्चात श्री मौज उठी कि जिस किसी को जो वस्तु की आवश्यकता हो वह निःसंकोच होकर माँग सकता है उसे हम आज पूरा करेंगे। एक श्रद्धालु ने हाथ जोड़ कर विनय की कि प्रभो मैं बहुत गरीब हूँ मेरी तमन्ना है कि मेरे पास बहुत सा धन हो जिससे मेरा गुज़ारा भी चल सके और साधु सन्तों की सेवा भी कर सकूँ उसकी भावना को देखकर श्री गुरुमहाराज जी ने शुभ आशीर्वाद दिया कि तुझे लखपति बनाया। दूसरे भक्त ने खड़े होकर हाथ जोड़कर विनय की श्री गुरुमहाराज जी ने पूछा क्यों भई तुम्हें धन की आवश्यकता है? उसने विनय की कि भगवन नहीं मेरे पास आपका दिया हुआ सब कुछ है लेकिन उसको सँभालने वाला नहीं है अर्थात पुत्र नहीं है।
आशीर्वाद दिया कि मैं अपने चार कुर्बान कर दूँगा तुझे चार दिये उसी गुरुमुख मण्डली में सत्संग में एक फकीर शाह रायबुलारदीन भी बैठे थे उसकी उत्सुकता को देखकर अन्तर्यामी गुरुदेव ने पूछा राय बुलारदीन आपको भी कुछ आवश्यकता हो तो निसन्देह निसंकोच होकर कहो। उसने हाथ जोड़ कर खड़े होकर विनय की कि प्रभो मुझे तो किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना नहीं है परन्तु मेरे मन में एक सन्देह उत्पन्न हो गया हैअगर आपकी कृपा हो तो मेरा सन्देह दूर कर दें।श्री वचन हुये कि सन्तमहापुरुषों की शरण में आकर जीव के संशय भ्रम दूर नहीं होंगे तो कहाँ होंगे,इसलिये अपना सन्देह हमें बताओ उसे अवश्य दूर करेंगे। वेनती की कि प्रभो अभी अभी आपने वचन फरमाये हैं कि प्रारब्ध से कम या अधिक किसी को नहीं मिलता अपने कर्मों का फल प्रत्येक जीव को भुगतना ही पड़ता है तो मेरे मन में सन्देह हुआ कि अभी जिसे आपने लखपति होने का आशीर्वाद दिया है
एक को चार पुत्र प्रदान किये हैं जब इनकी तकदीर में नहीं है तो आपने कहां से दे दिये?श्री गुरुमहाराज अति प्रसन्न हुये फरमाया रायबुलारदीन ये तेरा संशय नहीं है इन सबका संशय है आज सब के संशय भ्रम दूर हो जायेंगे।श्री गुरुमहाराज जी ने सेवक द्वारा एक कोरा कागज़ मोहर वाली स्याही मँगवाई और अपनी अँगुली की छाप(अँगूठी)उतार कर रायबुलारदीन से फरमाया कि बताओ इस अँगूठी के अक्षर उल्टे हैं कि सीधे?उसने उत्तर दिया कि उल्टे हैं सच्चे पादशाह। फिर स्याही में डुबो कर कोरे कागज़ पर मोहर छाप दी।अब पूछा बताओअक्षर उल्टे हुये है कि सीधे।उत्तर दिया कि महाराज अब सीधे हो गये हैं।श्री वचन हुये कि तुम्हारे प्रश्न का तुम्हें उत्तर दे दिया गया है।उसने विनय की भगवन मेरी समझ में कुछ नहींआया।श्री गुरु महाराज जी ने फरमाया जिस प्रकार छाप के अक्षर उल्टे थे लेकिन स्याही लगाने से छापने पर वह सीधे हो गये हैं।
इसी तरह ही जिस जीव के भाग्य उल्टे हों और अगर उसके मस्तक पर सन्त सतगुरु के चरण कमल की छाप लग जाये तो उसके भाग्य सीधे हो जाते हैं। सन्त महापुरुषों की शरण में आने से जीव की किस्मत पल्टा खा जाती है।भाग्य सितारा चमक जाता है।कहते हैं ब्राहृा जी ने चार वेद रचे इसके बाद जो स्याही बच गई वे उसे लेकर भगवान के पास गये उनसे प्रार्थना की कि इस स्याही का क्या करना है? भगवान ने कहा इस स्याही को ले जाकर सन्तों के हवाले कर दो उनकोअधिकार है कि वे लिखें या मिटा दें या जिस की किस्मत में जो लिखना चाहें लिख दें।
इसलिये जो सौभाग्यशाली जीव सतगुरु की चरण शरण में आ जाते हैं सतगुरु के चरणों कोअपने मस्तक पर धारण करते हैं सभी कार्य उनकी आज्ञा मौजानुसार निष्काम भाव से सेवा करते हैं सुमिरण करते हैं निःसन्देह यहाँ भी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैंऔर कर्म बन्धन से छूटकर आवागमन के चक्र से आज़ाद होकर मालिक के सच्चे धाम को प्राप्त करते हैं।
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