Wednesday, April 10, 2024

Oneness Talks Program 11 April 2024, Nirankari Sarovar Delhi

धन निरंकार जी 

सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की असीम कृपा और दृष्टि के अनुपम उपहार - *Oneness Talks का अगला सत्र वीरवार, 11 अप्रैल 2024 को शाम 6.30 बजे से 9 बजे तक निरंकारी सरोवर, दिल्ली के दिव्य प्रांगण में आयोजित किया जा रहा है।*

इस बार भी हम Greek Philosophy (यूनानी दर्शन) पर परिचर्चा करते हुए उसकी सामयिक प्रासंगिकता पर विवेचन करेंगे। *सुकरात, प्लेटो, डायोजीनीज़ और अरस्तू जैसे दार्शनिकों के जीवन की कथा कहानियों के साथ साथ अनेक संदेश भी साझा होंगे।* 

“*मन के भीतर का बचपन”, “जीवन की क्षणभंगुरता” और “वर्तमान में आनंद के महत्व” जैसे विषयों पर ज्ञान वर्धक चर्चा* के लिए अवश्य पधारें और ईद के मुबारक मौक़े को मुकम्मल बनायें। 

सभी का हार्दिक स्वागत है । अपने साथ एक पेन अवश्य लेकर आयें। 

प्रचार विभाग 
संत निरंकारी मंडल 🙏🏼😊

Sunday, November 25, 2018

71वें निरंकारी संत समागम स्थल पर निरंकारी प्रदर्शनी का हुआ उद्घाटन


71वें वार्षिक निरंकारी संत समागम स्थल समालखा में निरंकारी सद्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने माता सविंदर जी के जीवन को समर्पित निंरकारी प्रदर्शनी का उद्घाटन आज अपने कर कमलों द्वारा किया। इस प्रदर्शनी के चार भाग हैं-निरंकारी प्रदर्शनी, बाल प्रदर्शनी, स्वास्थ्य प्रदर्शनी व सन्त निरंकारी चेरिटेबल फाउंडेशन प्रदर्शनी। इस वर्ष निरंकारी प्रर्दशनी का मुख्य भाव  मां सविंदर- एक रोशन सफर है। प्रर्दशनी में माता सविंदर जी के सहज, दिव्य व समर्पित गुणों को उजागर किया गया है। प्रदर्शनी में उनके जीवन के भिन्न-भिन्न पहलू फोटो, चित्रों तथा कट-आउट द्वारा दिखाए गए हैं।

Tuesday, November 13, 2018

निधिवन ... वृंदावन



♻ एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु की सुनाई हुई भागवत कथा से इतना मोहित हुआ कि वह हर समय वृन्दावन आने की सोचने लगा उसके गुरु उसे निधिवन के बारे में बताया करते थे और कहते थे कि आज भी भगवान यहाँ रात्रि को रास रचाने आते है उस भक्त को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय किया कि वृन्दावन जाऊंगा और ऐसा ही हुआ श्री राधा रानी की कृपा हुई और आ गया वृन्दावन उसने जी भर कर बिहारी जी का राधा रानी का दर्शन किया लेकिन अब भी उसे इस बात का यकीन नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास रचाते है उसने सोचा कि एक दिन निधिवन रुक कर देखता हू इसलिए वो वही पर रूक गया और देर तक बैठा रहा और जब शाम होने को आई तब एक पेड़ की लता की आड़ में छिप गया

♻ जब शाम के वक़्त वहा के पुजारी निधिवन को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस भक्त पर पड गयी और उसे वहा से जाने को कहा तब तो वो भक्त वहा से चला गया लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप गया और फिर से शाम होते ही पुजारियों द्वारा निकाला गया और आखिर में उसने निधिवन में एक ऐसा कोना खोज निकाला जहा उसे कोई न ढूंढ़ सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात वही निधिवन में बैठा रहा और अगले दिन जब सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है और उसके मुह से झाग निकल रहा है

♻ तब उन सेविकाओ ने सभी को बताया तो लोगो कि भीड़ वहा पर जमा हो गयी सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और ऐसे ही वो ३ दिन तक बिना कुछ खाएपीये ऐसे ही बेसुध पड़ा रहा और ५ दिन बाद उसके गुरु जो कि गोवर्धन में रहते थे बताया गया तब उसके गुरूजी वहा पहुचे और उसे गोवर्धन अपने आश्रम में ले आये आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा और एक दिन सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से लिखने के लिए कलम और कागज़ माँगा गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने चले गए जब गुरूजी स्नान करके आश्रममें आये पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग कर अपना शरीर त्याग दिया थाऔर उस कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था उस पर लिखा था-

♻ "गुरूजी मैंने यह बात किसी को भी नहीं बताई है,पहले सिर्फ आपको ही बताना चाहता हू ,आप कहते थे न कि निधिवन में आज भी भगवान रास रचाने आते है और मैं आपकी कही बात पर यकीन नहीं करता था, लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात बांके बिहारी का राधा रानी के साथ गोपियों के साथ रास रचाते हुए दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोईभी इच्छा नहीं है ,इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने प्राप्त कर लिया है और अब मैं जीकर करूँगा भी क्या?

♻ श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है,इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिये"

♻ वो पत्र जो उस भक्त ने अपने गुरु के लिए लिखा था आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में रखा हुआ है और बंगाली भाषा में लिखा हुआ है
♻ कहा जाता है निधिवन के सारी लताये गोपियाँ है जो एक दूसरे कि बाहों में बाहें डाले खड़ी है जब रात में निधिवन में राधा रानी जी, बिहारी जी के साथ रास लीला करती है तो वहाँ की लताये गोपियाँ बन जाती है, और फिर रास लीला आरंभ होती है,इस रास लीला को कोई नहीं देख सकता,दिन भर में हजारों बंदर, पक्षी,जीव जंतु निधिवन में रहते है पर जैसे ही शाम होती है,सब जीव जंतु बंदर अपने आप निधिवन में चले जाते है एक परिंदा भी फिर वहाँ पर नहीं रुकता यहाँ तक कि जमीन के अंदर के जीव चीटी आदि भी जमीन के अंदर चले जाते है रास लीला को कोई नहीं देख सकता क्योकि रास लीला इस लौकिक जगत की लीला नहीं है रास तो अलौकिक जगत की "परम दिव्यातिदिव्य लीला" है कोई साधारण व्यक्ति या जीव अपनी आँखों से देख ही नहीं सकता. जो बड़े बड़े संत है उन्हें निधिवन से राधारानी जी और गोपियों के नुपुर की ध्वनि सुनी है.

♻ जब रास करते करते राधा रानी जी थक जाती है तो बिहारी जी उनके चरण दबाते है. और रात्रि में शयन करते है आज भी निधिवन में शयन कक्ष है जहाँ पुजारी जी जल का पात्र, पान,फुल और प्रसाद रखते है, और जब सुबह पट खोलते है तो जल पीला मिलता है पान चबाया हुआ मिलता है और फूल बिखरे हुए मिलते है. राधे..........राधे..........

श्रीकृष्ण भक्त पागल बाबा



एक पंडितजी थे, वो श्रीबांके बिहारी लाल को बहुत मानते थे, सुबह-शाम बस ठाकुरजी ~ ठाकुरजी करके ही उनका समय व्यतीत होता..||

पारिवारिक समस्या के कारण उन्हें धन की आवश्यकता हुई.. तो पंडितजी सेठ जी के पास धन मांगने गये.. सेठ जी धन दे तो दिया, पर उस धन को लौटाने की बारह किस्त बांध दी.. पंडितजी को कोई एतराज ना हुआ.. उन्होंने स्वीकृति प्रदान कर दी..||
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अब धीरे-धीरे पंडितजी ने ११ किस्त भर दीं एक किस्त ना भर सके.. इस पर सेठ जी १२ वीं किस्त के समय निकल जाने पर पूरे धन का मुकद्दमा पंडितजी पर लगा दिया..||
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कोर्ट-कचहरी हो गयी.. जज साहब बोले: पंडितजी तुम्हारी तरफ से कौन गवाही देगा.. इस पर पंडितजी बोले कि मेरे ठाकुर बांकेबिहारी लाल जी गवाही देंगे.. पूरा कोर्ट ठहाकों से भर गया.. अब गवाही की तारीख तय हो गयी..||

पंडितजी ने अपनी अर्जी ठाकुरजी के श्रीचरणों में लिखकर रख दी, अब गवाही का दिन आया कोर्ट सजा हुआ था, वकील-जज अपनी दलीलें पेश कर रहे थे.. पंडित को ठाकुरजी पर भरोसा था..||
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जज ने कहा: पंडित अपने गवाह को बुलाओ, पंडित ने ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगाया, तभी वहाँ एक वृद्व आया.. जिसके चेहरे पर मनोरम तेज था, उसने आते ही गवाही पंडितजी के पक्ष में दे दी.. वृद्व की दलीलें सेठ के वहीखाते से मेल खाती थीं कि फलां-फलां तारीख को किश्तें चुकाई गयीं।
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अब पंडित को ससम्मान रिहा कर दिया गया.. ततपश्चात जज साहब पंडित से बोले कि ये वृद्व जन कौन थे, जो गवाही देकर चले गये.. तो पंडित बोला: अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर था..||
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जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया.. इतना सुनना था की जज पंडित जी के चरणों में लेट गया.. और ठाकुरजी का पता पूछा.. पंडित बोला मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है.. वो हर जगह है, अब जज ने घरबार काम धंधा सब छोङ ठाकुर को ढूंढने निकल पङा.. सालों बीत गये पर ठाकुर ना मिला..||

अब जज पागल-सा मैला कुचैला हो गया, वह भंडारों में जाता पत्तलों पर से जुठन उठाता.. उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी मूर्ति को अर्पित करता और आधा खुद खाता.. इसे देख कर लोग उसके खिलाफ हो गये, उसे मारते पीटते.. पर वो ना सुधरा, जूठन बटोर कर खाता और खिलाता रहा..||
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एक भंडारे में लोगों ने अपनी पत्तलों में कुछ ना छोङा, ताकी ये पागल ठाकुरजी को जूठन ना खिला सके.. पर उसने फिर भी सभी पत्तलों को पोंछ-पाछकर एक निवाल इकट्ठा किया और अपने मुख में डाल लिया..||
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पर अरे ये क्या, वो ठाकुर को खिलाना तो भूल ही गया, अब क्या करे.. उसने वो निवाला अन्दर ना सटका की पहले मैं खा लूंगा तो ठाकुर का अपमान हो जायेगा और थूका तो अन्न का अपमान होगा..||
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करे तो क्या करें निवाल मुँह में लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगा रहा था कि एक सुंदर ललाट चेहरा लिये बाल-गोपाल स्वरूप में बच्चा पागल जज के पास आया और बोला: क्यों जज साहब, आज मेरा भोजन कहाँ है.. जज साहब मन ही मन गोपाल छवि निहारते हुये अश्रू धारा के साथ बोले: ठाकुर बङी गलती हुई, आज जो पहले तुझे भोजन ना करा सका..||
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पर अब क्या करुं..??
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तो मन मोहन ठाकुर जी मुस्करा के बोले अरे जज तू तो निरा पागल हो गया है रे जब से अब तक मुझे दूसरों का जूठन खिलाता रहा..||
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आज अपना जूठन खिलाने में इतना संकोच चल निकाल निवाले को आज तेरी जूठन सही..||
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जज की आंखों से अविरल धारा निकल पङी जो रुकने का नाम ना ले रही और मेरा ठाकुर मेरा ठाकुर कहता-कहता बाल गोपाल के श्रीचरणों में गिर पङा और वहीं देह का त्याग कर दिया..||
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और मित्रों वो पागल जज कोई और नहीं वही (पागल बाबा) थे, जिनका विशाल मंदिर आज वृन्दावन में स्थित है..
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भाव के भूखें हैं प्रभू और भाव ही एक सार है -
और भावना से जो भजे तो भव से बेङा पार है..||
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गोवर्धनजी पर्वत की परिक्रमा क्यों?

श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को भगवान का रूप बताया है और उसी की पूजा करने के लिए सभी को प्रेरित किया था।

आज भी गोवर्धन पर्वत चमत्कारी है और वहां जाने वाले हर व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने वाले हर व्यक्ति को जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है।
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एक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेने के पूर्व राधाजी से भी साथ चलने का निवेदन किया।
इस पर राधाजी ने कहा कि मेरा मन पृथ्वी पर वृंदावन, यमुना और गोवर्धन पर्वत के बिना नहीं लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने हृदय की ओर दृष्टि डाली जिससे एक तेज निकल कर रास भूमि पर जा गिरा। यही तेज पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया।
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शास्त्रों के अनुसार यह पर्वत रत्नमय, झरनों, कदम्ब आदि वृक्षों से भरा हुआ था एवं कई अन्य सामग्री भी इसमें उपलब्ध थी।
इसे देखकर राधाजी प्रसन्न हुई तथा श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने भी पृथ्वी पर अवतार धारण किया।
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कभी विचार किया है कि हम श्रीगिरिराजजी की परिक्रमा क्यों करते हैं?
अज्ञानता अथवा अनभिज्ञता से किया हुआ अलौकिक कार्य भी सुन्दर फल का ही दाता है, तो यदि उसका स्वरूप एवं भाव समझकर हम कोई अलौकिक कार्य करें, तो उसके बाह्याभ्यान्तर फल कितना सुन्दर होगा, यह विचारणीय है।
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परिक्रमा का भाव समझिये। हम जिसकी परिक्रमा कर रहें हों, उसके चारों ओर घूमते हैं।
जब किसी वस्तु पर मन को केन्द्रित करना होता है, तो उसे मध्य में रखा जाता है, वही केन्द्र बिन्दु होता है। अर्थात् जब हम श्रीगिरिराजजी की परिक्रमा करते हैं तो हम उन्हें मध्य में रखकर यह बताते हैं कि हमारे ध्यान का पूरा केन्द्र आप ही हैं और हमारे चित्त की वृत्ति आप में ही है और सदा रहे। दूसरा भावात्मक पक्ष यह भी है कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो उसके चारों ओर घूमना हमें अच्छा लगता है, सुखकारी लगता है।
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श्रीगिरिराजजी के चारों ओर घूमकर हम उनके प्रति अपने प्रेम और समर्पण का भी प्रदर्शन करते हैं। परिक्रमा का एक कारण यह भी है कि श्रीगिरिराजजी के चारों ओर सभी स्थलों पर श्रीठाकुरजी ने अनेक लीलायें की हैं जिनका भ्रमण करने से हमें उनकी लीलाओं का अनुसंधान रहता है।
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परिक्रमा के चार मुख्य नियम होते हैं जिनका पालन करने से परिक्रमा अधिक फलकारी बनती है।
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“मुखे भग्वन्नामः,
हृदि भगवद्रूपम्,
हस्तौ अगलितं फलम्, नवमासगर्भवतीवत् चलनम्”
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अर्थात्, मुख में सतत् भगवत्-नाम, हृदय में प्रभु के स्वरूप का ही चिंतन, दोनों हाथों में प्रभु को समर्पित करने योग्य ताजा फल,
और नौ मास का गर्भ धारण किये हुई स्त्री जैसी चाल, ताकि अधिक से अधिक समय हम प्रभु की टहल और चिंतन में व्यतीत कर सकें।
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श्रीगिरिराजजी पाँच स्वरूप से हमें अनुभव करा सकते हैं, दर्शन देते हैं। पर्वत रूप में, सफेद सर्प के रूप में, सात बरस के ग्वाल/बालक के रूप में, गाय के रूप में और सिंह के रूप में।
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श्रीगिरिराजजी का ऐसा सुन्दर और अद्भुत स्वरूप है कि इसे जानने के बाद कौन यह नहीं गाना चाहेगा कि “गोवर्धन की रहिये तरहटी श्री गोवर्धन की रहिये…”।
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श्री श्रीनाथजी व् श्री गिरिराज जी दोनों एक ही है ।
🎋श्री गिरिराज धारण जी की जय🎋

मंदिर का घंटा स्टेटिक डिस्चार्ज यंत्र

किसी भी मंदिर में प्रवेश करते समय आरम्भ में ही एक बड़ा घंटा बंधा होता है. मंदिर में प्रवेश करने वाला प्रत्येक भक्त पहले घंटानाद करता है और फिर मंदिर में प्रवेश करता है.

क्या कारण है इसके पीछे?

इसका एक वैज्ञानिक कारण है..

जब हम बृहद घंटे के नीचे खड़े होकर सर ऊँचा करके हाथ उठाकर घंटा बजाते हैं, तब प्रचंड घंटानाद होता है.

यह ध्वनि 330 मीटर प्रति सेकंड के वेग से अपने उद्गम स्थान से दूर जाती है, ध्वनि की यही शक्ति कंपन के माध्यम से प्रवास करती है. आप उस वक्त घंटे के नीचे खडे़ होते हैं. अतः ध्वनि का नाद आपके सहस्रारचक्र
(ब्रम्हरंध्र,सिर के ठीक ऊपर) में प्रवेश कर शरीरमार्ग से
भूमि में प्रवेश करता है.

यह ध्वनि प्रवास करते समय आपके मन में (मस्तिष्क में) चलने वाले असंख्य विचार, चिंता, तनाव, उदासी, मनोविकार आदि इन समस्त नकारात्मक विचारों को अपने साथ ले जाती हैं, और आप निर्विकार अवस्था में परमेश्वर के सामने जाते हैं. तब आपके भाव शुद्धतापूर्वक परमेश्वर को समर्पित होते हैं.

घंटे के नाद की तरंगों के अत्यंत तीव्र के आघात से आस-पास के वातावरण के व हमारे शरीर के सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता है, जिससे वातावरण मे शुद्धता रहती है, और हमें स्वास्थ्य लाभ होता है.

इसीलिए मंदिर मे प्रवेश करते समय घंटानाद अवश्य करें, और थोड़ा समय घंटे के नीचे खडे़ रह कर घंटानाद का आनंद अवश्य लें. आप चिंतामुक्त व शुचिर्भूत बनेगें.

ईश्वर की दिव्य ऊर्जा व मंदिर गर्भ की दिव्य ऊर्जाशक्ति आपका मस्तिष्क ग्रहण करेगा. आप प्रसन्न होंगे और शांति मिलेगी.

अतः आत्म-ज्ञान ,आत्म-जागरण, और दिव्यजीवन के परम आनंद की अनुभूति के लिये मंदिर जाएं व घंटानाद अवश्य करें.

शिवपुराण में वर्णित है मृत्यु के ये 12 संकेत

धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को महाकाल भी कहा गया है। महाकाल का अर्थ है काल यानी मृत्यु भी जिसके अधीन हो। भगवान शिव जन्म-मृत्यु से मुक्त हैं। अनेक धर्म ग्रंथों में भगवान शंकर को अनादि व अजन्मा बताया गया है। भगवान शंकर से संबंधित अनेक धर्मग्रंथ प्रचलित हैं, लेकिन शिवपुराण उन सभी में सबसे अधिक प्रामाणिक माना गया है।

इस ग्रंथ में भगवान शिव से संबंधित अनेक रहस्यमयी बातें बताई गई हैं। इसके अलावा इस ग्रंथ में ऐसी अनेक बातें लिखी हैं, जो आमजन नहीं जानते। शिवपुराण में भगवान शिव ने माता पार्वती को मृत्यु के संबंध में कुछ विशेष संकेत बताए हैं। इन संकेतों को समझकर यह जाना जा सकता है कि किस व्यक्ति की मौत कितने समय में हो सकती है। ये संकेत इस प्रकार हैं-
  1.  शिवपुराण के अनुसार जिस मनुष्य को ग्रहों के दर्शन होने पर भी दिशाओं का ज्ञान न हो, मन में बैचेनी छाई रहे, तो उस मनुष्य की मृत्यु 6 महीने में हो जाती है।
  2.  जिस व्यक्ति को अचानक नीली मक्खियां आकर घेर लें। उसकी आयु एक महीना ही शेष जाननी चाहिए।
  3. शिवपुराण में भगवान शिव ने बताया है कि जिस मनुष्य के सिर पर गिद्ध, कौवा अथवा कबूतर आकर बैठ जाए, वह एक महीने के भीतर ही मर जाता है। ऐसा शिवपुराण में बताया गया है।
     
  4. यदि अचानक किसी व्यक्ति का शरीर सफेद या पीला पड़ जाए और लाल निशान दिखाई दें तो समझना चाहिए कि उस मनुष्य की मृत्यु 6 महीने के भीतर हो जाएगी। जिस मनुष्य का मुंह, कान, आंख और जीभ ठीक से काम न करें, शिवपुराण के अनुसार उसकी मृत्यु 6 महीने के भीतर हो जाती है।      
                                                                                                                                                   
  5. जिस मनुष्य को चंद्रमा व सूर्य के आस-पास का चमकीला घेरा काला या लाल दिखाई दे, तो उस मनुष्य की मृत्यु 15 दिन के अंदर हो जाती है। अरूंधती तारा व चंद्रमा जिसे न दिखाई दे अथवा जिसे अन्य तारे भी ठीक से न दिखाई दें, ऐसे मनुष्य की मृत्यु एक महीने के भीतर हो जाती है।

     
  6.  त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) में जिसकी नाक बहने लगे, उसका जीवन पंद्रह दिन से अधिक नहीं चलता। यदि किसी व्यक्ति के मुंह और कंठ बार-बार सूखने लगे तो यह जानना चाहिए कि 6 महीने बीत-बीतते उसकी आयु समाप्त हो जाएगी।
  7. जब किसी व्यक्ति को जल, तेल, घी तथा दर्पण में अपनी परछाई न दिखाई दे, तो समझना चाहिए कि उसकी आयु 6 माह से अधिक नहीं है। जब कोई अपनी छाया को सिर से रहित देखे अथवा अपने को छाया से रहित पाए तो ऐसा मनुष्य एक महीने भी जीवित नहीं रहता।

     
  8. जब किसी मनुष्य का बायां हाथ लगातार एक सप्ताह तक फड़कता ही रहे, तब उसका जीवन एक मास ही शेष है, ऐसा जानना चाहिए। जब सारे अंगों में अंगड़ाई आने लगे और तालू सूख जाए, तब वह मनुष्य एक मास तक ही जीवित रहता है।

     
  9. जिस मनुष्य को ध्रुव तारा अथवा सूर्यमंडल का भी ठीक से दर्शन न हो। रात में इंद्रधनुष और दोपहर में उल्कापात होता दिखाई दे तथा गिद्ध और कौवे घेरे रहें तो उसकी आयु 6 महीने से अधिक नहीं होती। ऐसा शिवपुराण में बताया गया है।

     
  10. जो मनुष्य अचानक सूर्य और चंद्रमा को राहू से ग्रस्त देखता है (चंद्रमा और सूर्य काले दिखाई देने लगते हैं) और संपूर्ण दिशाएं जिसे घुमती दिखाई देती हैं, उसकी मृत्यु 6 महीने के अंदर हो जाती है।

     
  11. शिवपुराण के अनुसार जो व्यक्ति हिरण के पीछे होने वाली शिकारियों की भयानक आवाज को भी जल्दी नहीं सुनता, उसकी मृत्यु 6 महीने के भीतर हो जाती है। जिसे आकाश में सप्तर्षि तारे न दिखाई दें, उस मनुष्य की आयु भी 6 महीने ही शेष समझनी चाहिए।
                                                   
  12. शिवपुराण के अनुसार जिस व्यक्ति को अग्नि का प्रकाश ठीक से दिखाई न दे और चारों ओर काला अंधकार दिखाई दे तो उसका जीवन भी 6 महीने के भीतर समाप्त हो जाता है।

माँ सीता की रसोई और हनुमान जी का भोजन

घटना उस समय की है जब श्री राम और देवी सीता वनवास की अवधि पूरी करके अयोध्या लौट चुके हैं। अन्य सब लोग तो श्री राम के राज्याभिषेक के उपरांत अपने अपने राज्यों को लौट गए, किंतु हनुमान जी ने श्री राम के चरणों में रहने को ही जीवन का लक्ष्य माना।

एक दिन देवी सीता के मन में आया कि हनुमान ने लंका में आकर मुझे खोज निकाला और फिर युद्ध में भी श्री राम को अनुपम सहायता की, अब भी अपने घर से दूर रह कर हमारी सेवा करते हैं, तो मुझे भी उनके सम्मान में कुछ करना चाहिए। यह विचार कर उन्होंने हनुमान को अपनी रसोई से भोजन के लिए आमंत्रित कर डाला माँ स्वयं पका कर खिलाएँगी आज अपने पुत्र हनुमान को।

सुबह से माता रसोई में व्यस्त हैं हर प्रकार से हनुमान जी की पसंद के भोजन पकाए जा रहे हैं। एक थाल में मोतीचूर के लड्डू सजे हैं, तो दुसरे में जलेबियाँ पूड़ी और कचोरी और बूंदी भी पकाए जा रहे हैं आज किसी को भोजन की आज्ञा नहीं जब तक कि हनुमान न खा लें प्रभु राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सभी प्रतीक्षा में हैं कि कब हनुमान भोजन के लिए आयें और कब हमारी भी पेट पूजा हो।

दोपहर हुई और  निमंत्रण के समय अन्य्सार पवनपुत्र का आगमन हुआ बड़े शौक से आ कर माता की चरण वन्दना की और अनुमति पाकर आसन पर विराजे माँ परोसने लगी और पुत्र खाने लगा। लायो माता लायो पूड़ी दो, कचोरी दो, लड्डू दो हनुमान मांग मांग कर खा रहे हैं और माता रीझ कर खिला रही हैं थाल के थाल सफाचट होते जा रहे हैं पर हनुमान की तृप्ति नहीं हुई माता ने जितना पकाया था सब समाप्त, किंतु अभी पेट कहाँ भरा लल्ला का?

माता सीता पुनः भागी रसोई की ओर, पुनः चूल्हा जलाया, पकाना आरम्भ किया, उधर हनुमान पुकार रहे हैं, माता बहुत स्वादिष्ट भोजन है, और दीजिये, अभी पेट नहीं भरा माता पकाती जा रही हैं, हनुमान खाते जा रहे हैं भण्डार का सारा अन्न समाप्त माता पर धर्मसंकट आन पडा है, क्या करें? भागी गयीं श्री राम प्रभु से सहायता की गुहार करने प्रभु आप ही कुछ कीजिये, और भंडार का प्रबंध कीजिये, ये हनुमान तो सब चट किये जा रहा है।

श्री राम सुन कर हंस दीये, बोले, सीते, तुमने मेरे भक्त को अब तक नहीं पहचाना उसका पेट इन सबसे नहीं भरने वाला, उसे कुछ और चाहिए देवी ने पूछा, क्या है वो वस्तु जो मेरे हनुमान लल्ला को तृप्ति देगी? रामजी बोले चलो मेरे संग, मंदिर में ले गए, वहां तुलसी माँ विराजित है एक पत्ता हाथ में लिया, आँख बंद करके उसमें अपने स्नेह, अपने आशीष, अपनी कृपा का समावेश किया, और देवी को पकड़ा दिया, जायो देवी अपने पुत्र को संतुष्ट करो।

माता भी समझ चुकी अब तो अपने पुत्र की इच्छा को सौम्य मुस्कान लिए लौटीं रसोई की ओर, बोलीं, पुत्र हाथ बढायो और वो ग्रहण करो जिसकी इच्छा मन में लिए तुम मेरा पूरा भण्डार निपटा गए हनुमान जी ने हाथ बढाया और अभिमंत्रित तुलसीदल ग्रहण किया मुंह में रखते ही चित्त प्रसन्न, और आत्मा तृप्त आसन से उठ खड़े हुए, बोले माँ, आनंद आ गया आपने पहले ही दे दिया होता तो इतना परिश्रम न करना पड़ता आपको।

माता हंस पडी, बोलीं, पुत्र तुम्हारी महिमा केवल तुम्हारे प्रभु जानते हैं वो भगवान् और तुम उनके भक्त, मैं माता तो बीच में यूं ही आ गयी हनुमान ने चरणों में प्रणाम किया, बोले, माँ आप बीच में हो तो ही प्रसाद मिला है आज मुझे, आपके श्री कर से माता के नयनों में आनंद के अश्रु चमक आये, और मुख से अपार आशीष अपने हनुमान लल्ला के लिए।