Friday, March 3, 2017

Parvachan of Satguru Mata Savinder Hardev Singh Ji Maharaj (23 February 2017, Guru Puja Diwas, Delhi)



 *सतगुरु माता सविंदर हरदेव जी महाराज के प्रवचन (23-फरवरी-17, गुरु पूजा दिवस, दिल्ली)-*

प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी

1) पिछले 8-9 महीने से हम ज़िक्र कर भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं, बाबाजी के आशीर्वादों का, बाबा जी की शिक्षाओं का, एक अनथक जीवन जो सिर्फ मानवता को समर्पित रहा।अपनी परवाह किए बिना, अपनी भूख प्यास नींद की। 
He wanted to uplift humanity and society through Spirituality.

उन्होंने यही सिखाया *_'नर सेवा ही नारायण पूजा है'_* और यही चाहा कि - 
*_'मानव को मानव हो प्यारा, ईक दूजे का बनें सहारा'_*।

2) आज सुबह भी जाने का मौका मिला, समालखा के पास, 4 गांव जो मिशन ने adopt किए हैं बाबा जी के आशीर्वाद से, सब मिशन की शिक्षाओं का, बाबा जी की शिक्षाओं का, They were very impressed और दिल्ली में भी आपने देखा, हॉस्पिटल भी clean हुआ, *All over India we cleaned 263 Railway Stations.* ये सिर्फ इसलिए हो पा रहा है क्योंकि बाबा जी ने हमको हमेशा यही समझाया कि सब इंसान हमारे अपने हैं, ये सब हमारा परिवार है। सबसे, हमें बाबाजी ने हमें समझाया कि प्यार करना है।

3) कुछ समय पहले भी दासी अवनीत जी की एक बात का जिक्र कर रही थी कि, वो बोल रहे थे कि हम किसी को जानते नहीं है अगर तो हम उसके साथ कैसे प्यार कर सकते हैं। इसका सरल उपाय एक ही है कि हम उसके साथ जुड़ जाएँ जो सारी दुनिया के साथ जुड़ा हुआ है, जिसका ये सब परिवार है। वो एक निरंकार प्रभु परमात्मा के अलावा, इस निरंकार प्रभु परमात्मा के अलावा और कौन हो सकता है। इसके साथ जुड़े रहेंगे तो सब हमारे अपने ही हमें लगेंगे, सबके लिए हमारे दिल में प्यार होएगा।

4) *बाबा जी की आशीर्वादों का ज़िक्र हम सारी उम्र भी करते रहें, तो वो हम पूरा नहीं कर पाएंगे, बाबाजी की मेहरबानियों का, बाबाजी की आशीर्वादों का ज़िक्र, पर हम इतना जरूर कर सकते हैं, जैसा जीवन बाबाजी ने हमसे चाहा, वो जीवन हमारा हमेशा बना रहे और हम निरंकार के साथ जुड़े रहें।*

5) अभी भी आपने देखा जब  documentary चल रही थी, जब तक तार जुड़ी रही, तो सब बैठके उसको देख रहे थे और ज्यों ही तार ने अपने आप को अलग किया, सारा कुछ रुक गया।
निरंकार किरपा करे, *हमेशा निरंकार के साथ जुड़के, निरंकार की इच्छा में रहके, जैसे बाबाजी ने चाहा, हम वैसा ही जीवन जी पाएं।*

धन निरंकार जी

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