Tuesday, September 5, 2017

कोई तन दुखी,कोई मन दुखी, कोई धन बिन रहत उदास। थोड़े थोड़े सब दुखी, सुखी मेरे सतगुरू के दास।

कोई तन दुखी,कोई मन दुखी,
कोई धन बिन रहत उदास।
थोड़े थोड़े सब दुखी,
सुखी मेरे सतगुरू के दास।

दुनिया मे सब तरह के भौतिक पदार्थ हैं हर प्रकार की सुख सुविधा के लिए फिर भी इंसान दुखी है,अपने तन को लेकर,अपने मन से विचलित होकर, तो कोई धन की कमी या लोभ की वजह से,लेकिन सबसे सुखी वही है जिसके पास सतगुरु की रहमत है,सतगुरू का दिया हुआ अनमोल तोहफा ये ब्रह्मज्ञान है,और निरंकार का दिया हुआ सिमरन है।सतगुरु से इस हरी का नामधन पाकर सब दुख कष्ट दूर भाग जाते हैं और केवल इस निरंकार हरी का शुकराना करने वाले भाव बनते चले जाते हैं,जिस से ये मन केवल इसकी रजा में रहता है और हमेशा हर हाल में आनंद की अनुभति करता रहता है।क्योंकि केवल हरी का नाम ही सुखदाई है इस संसार मे बाकी सब मोह माया है जो आज है कल नही होगी।एक हरी का नाम ही हमेशा रहेगा।

🙏 धन निरंकार जी 🙏

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