Tuesday, September 5, 2017

आत्म जागृति

दीया हो और बाती भी हो फिर भी दीप नही जलेगी,
दीया हो,बाती हो और तेल भी हो,फिर भी दीप नही जलेगी,
जरुरत होगी किसी जलते हुये लौ की जो दीये को जला दे ।
दीया ,बाती,तेल और लौ भी मिल गई तो क्या दीया जल जायेगा,
एक शर्त पर जलेगा कि दीये में बाती पुरी डुबी ना हो,थोड़ा तेल में तथा थोड़ा बाहर होना जरुरी है ।अगर बाती तेल में पुरी तरह डुब जाये तो भी दीया नही जलेगा ।

सत्गुरु ने पॉच शर्तों के साथ ज्ञान की रोशनी प्रदान की,अगर इन प्रणों का पालन किया गया तो ज्ञान जीवन में टिका रहता है अन्यथा ये लुप्त हो जाता है ।

 आत्मानुभूति के बाद ज्ञान की ज्योंति जलाये रखने के लिये निरन्तर सेवा,सिमरन,सत्संग की जरुरत पड़ती है तभी आत्म जागृति बनी रहती है,निरंकार दातार का एहसास बना रहता है ।

जिस प्रकार सिर्फ दीये को जला देने भर से वो जलता नही रहता है समय समय पर तेल डालते रहना पड़ता है तथा हवाओं के झोको से भी रक्षा करनी पड़ती है तभी वो जलता रहता है ।
इसी प्रकार निरन्तर आत्म जागृति के लिये सत्गुरु द्वारा बताये बचनों को पालन करते हुये निरंतर निरंकार दातार, सत्गुरु की याद बनाये रखना पड़ता है ।तभी हर पल चेतन अवस्था बनी रहती है,स्वयं की अनुभूति होती रहती है ।

त्रुटियों को बक्सना जी सन्तों ...

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