सुख दुख अपने मन के स्थिति पर निर्भर है
प्रश्न‒सुख-दुःख किसे कहते हैं और इनकी निवृत्ति कैसे हो ?
उत्तर‒देखो, एक मार्मिक बात है कि वास्तव में सुख-दुःख हैं नहीं । हमारे मनके अनुकूल हो जाय तो सुख हो गया और मन के विरुद्ध हो गया तो दुःख हो गया । बाकी कुछ है नहीं सुख-दुःख ! ये हमारे बनाये हुए हैं । एक कुम्हार था, उसके दो लड़कियाँ थीं । उन दोनों का पासके गाँव में विवाह कर दिया था । एक लड़की के खेती का काम था और दूसरी के मिट्टी के बर्तन का काम था । एक दिन कुम्हार लड़कियों से मिलने के लिये गया । पूछा, ‘बेटी, क्या हाल चाल है ?’ ‘पिताजी, खेती सूख रही है । अगर पाँच-दस दिनों में वर्षा नहीं हुई तो फिर कुछ नहीं होगा ।’ दूसरी लड़की के यहाँ गया और पूछा तो वह कहने लगी ‘पिताजी ! बर्तन बनाकर सूखने के लिये रखे हैं, अगर दस-पन्द्रह दिन में वर्षा हो गयी तो सब मिट्टी हो जायगी ।’अब रामजी क्या करें बताओ ? एक के वर्षा होने से सुख है और एक के वर्षा होने से दुःख है । जिसके वर्षा होनेसे सुख है उसके वर्षा न होने से दुःख है तो यह सुख-दुःख अपने बनाये हुए हैं । वर्षा हो जाय अथवा वर्षा न हो‒यह हमारे हाथ की बात तो है नहीं । फिर क्यों सुखी-दुःखी होते हो? जो हो जाय, उसमें प्रसन्न रहो । जो होना होगा, वह होकर रहेगा ।
प्रश्न‒सुख-दुःख किसे कहते हैं और इनकी निवृत्ति कैसे हो ?
उत्तर‒देखो, एक मार्मिक बात है कि वास्तव में सुख-दुःख हैं नहीं । हमारे मनके अनुकूल हो जाय तो सुख हो गया और मन के विरुद्ध हो गया तो दुःख हो गया । बाकी कुछ है नहीं सुख-दुःख ! ये हमारे बनाये हुए हैं । एक कुम्हार था, उसके दो लड़कियाँ थीं । उन दोनों का पासके गाँव में विवाह कर दिया था । एक लड़की के खेती का काम था और दूसरी के मिट्टी के बर्तन का काम था । एक दिन कुम्हार लड़कियों से मिलने के लिये गया । पूछा, ‘बेटी, क्या हाल चाल है ?’ ‘पिताजी, खेती सूख रही है । अगर पाँच-दस दिनों में वर्षा नहीं हुई तो फिर कुछ नहीं होगा ।’ दूसरी लड़की के यहाँ गया और पूछा तो वह कहने लगी ‘पिताजी ! बर्तन बनाकर सूखने के लिये रखे हैं, अगर दस-पन्द्रह दिन में वर्षा हो गयी तो सब मिट्टी हो जायगी ।’अब रामजी क्या करें बताओ ? एक के वर्षा होने से सुख है और एक के वर्षा होने से दुःख है । जिसके वर्षा होनेसे सुख है उसके वर्षा न होने से दुःख है तो यह सुख-दुःख अपने बनाये हुए हैं । वर्षा हो जाय अथवा वर्षा न हो‒यह हमारे हाथ की बात तो है नहीं । फिर क्यों सुखी-दुःखी होते हो? जो हो जाय, उसमें प्रसन्न रहो । जो होना होगा, वह होकर रहेगा ।
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