सतगुरु माता सविंदर हरदेव जी महाराज के प्रवचन (6-अगस्त-17, दिल्ली)
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी
1) बाबा जी से अनेकों बार बाबा फरीद जी की वाणी आप सबने सुनी -
'न कर बंदेया मेरी-मेरी, ना ए तेरी ना ए मेरी।'
यह दुनिया तो चार दिन का मेला है, इसके बाद इस पांच तत्व के पुतले ने मिट्टी में मिल जाना है।
इसलिए बाबा फरीद जी कहते हैं-
'माटी नाल ना धोखा कर तू, तू वी माटी ए वी माटी,
जात-पात दी गाल ना कर तू जात वी माटी पात वी माटी,
जात सिर्फ खुदा दी उच्ची बाकी सब कुछ माटी-माटी।'
2) जब सब कुछ मिट्टी में ही मिल जाना है तो हम क्यों एक दूसरे के साथ मिल-जुलके नहीं रह पाते। हम क्यों एक दूसरे का बुरा करने के लिए सोचते रहते हैं, एक-दूसरे की बुराई करते रहते हैं।
क्योंकि आज के इंसान का nature तो ऐसा बन गया है कि वो हमेशा ये कोशिश में रहता है कि मैं किसी ना किसी तरीके से उसका बुरा करूँ, भले ही दूसरे का बुरा करते-करते उसका अपना भी उससे भी ज्यादा बुरा क्यों ना हो जाए।
3) 'इस धरा का इस धरा पे सब धरा रह जाएगा।'
ये भी आपने बाबाजी से सुना।
संतों ने हमेशा निरंकार के साथ ही जोड़ने की कोशिश करी क्योंकि जो कुछ है इस दुनिया में, नजर आ रहा है कुछ रहने वाला नहीं है। जब कुछ भी नहीं था तब यह निरंकार था, जब कुछ भी नहीं रहेगा यह निरंकार ही रहेगा।
4) इसलिए निरंकार से यही अरदास है कि निरंकार सबको इतनी ताकत दे कि एक गुरसिखी वाले गुण, गुरमत वाले गुण, बाबा जी की जो सिखलाई वो सारे गुण, सबके अंदर भरे भी और इन गुणों से अपने जीवन को वो खूबसूरत बना पाए और सिर्फ अपना जीवन नहीं बल्कि ये गुण दूसरों में भरके भी, उनके भी जीवन में सुंदरता लेके आ पाए।
5) आज FRIENDSHIP DAY भी है और दोस्ती या प्यार किसी शर्तों पे नहीं होता। There are no 'if's and 'but's in Love and Friendship.
निरंकार किरपा करे, सबके साथ बिना किसी खुदगर्ज़ी के हम सबको प्यार दे पाएं, सबसे दोस्ती निभा पाएं।
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी
1) बाबा जी से अनेकों बार बाबा फरीद जी की वाणी आप सबने सुनी -
'न कर बंदेया मेरी-मेरी, ना ए तेरी ना ए मेरी।'
यह दुनिया तो चार दिन का मेला है, इसके बाद इस पांच तत्व के पुतले ने मिट्टी में मिल जाना है।
इसलिए बाबा फरीद जी कहते हैं-
'माटी नाल ना धोखा कर तू, तू वी माटी ए वी माटी,
जात-पात दी गाल ना कर तू जात वी माटी पात वी माटी,
जात सिर्फ खुदा दी उच्ची बाकी सब कुछ माटी-माटी।'
2) जब सब कुछ मिट्टी में ही मिल जाना है तो हम क्यों एक दूसरे के साथ मिल-जुलके नहीं रह पाते। हम क्यों एक दूसरे का बुरा करने के लिए सोचते रहते हैं, एक-दूसरे की बुराई करते रहते हैं।
क्योंकि आज के इंसान का nature तो ऐसा बन गया है कि वो हमेशा ये कोशिश में रहता है कि मैं किसी ना किसी तरीके से उसका बुरा करूँ, भले ही दूसरे का बुरा करते-करते उसका अपना भी उससे भी ज्यादा बुरा क्यों ना हो जाए।
3) 'इस धरा का इस धरा पे सब धरा रह जाएगा।'
ये भी आपने बाबाजी से सुना।
संतों ने हमेशा निरंकार के साथ ही जोड़ने की कोशिश करी क्योंकि जो कुछ है इस दुनिया में, नजर आ रहा है कुछ रहने वाला नहीं है। जब कुछ भी नहीं था तब यह निरंकार था, जब कुछ भी नहीं रहेगा यह निरंकार ही रहेगा।
4) इसलिए निरंकार से यही अरदास है कि निरंकार सबको इतनी ताकत दे कि एक गुरसिखी वाले गुण, गुरमत वाले गुण, बाबा जी की जो सिखलाई वो सारे गुण, सबके अंदर भरे भी और इन गुणों से अपने जीवन को वो खूबसूरत बना पाए और सिर्फ अपना जीवन नहीं बल्कि ये गुण दूसरों में भरके भी, उनके भी जीवन में सुंदरता लेके आ पाए।
5) आज FRIENDSHIP DAY भी है और दोस्ती या प्यार किसी शर्तों पे नहीं होता। There are no 'if's and 'but's in Love and Friendship.
निरंकार किरपा करे, सबके साथ बिना किसी खुदगर्ज़ी के हम सबको प्यार दे पाएं, सबसे दोस्ती निभा पाएं।
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी
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