सतगुरु माता सविंदर हरदेव जी महाराज के प्रवचन (मुक्ति-पर्व, 15-अगस्त-17, दिल्ली)
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी
1) आज 15 अगस्त 'मुक्ति-पर्व' के मौके पे हम यहां महापुरुषों के वचन सुन रहे हैं और उनसे प्रेरणा ले रहे हैं। आज के दिन जगत माता जी ने अपना शरीर त्यागा। एक प्रीत, प्यार, नम्रता त्याग की वो मूरत थीं, सबको भरपूर प्यार दिया।
2) शहनशाह जी के जीवन से भी हम सब वाकिफ हैं। अनेकों जिंदगियां उन्होंने सवारी और एक भक्ति या भक्त का जीवन कैसे होना चाहिए, वो भी हमें जी के दिखाया। पहले बाबा बूटा सिंह जी के साथ, फिर बाबा गुरबचन सिंह जी के समय एक शिष्य बनकर जी के उन्होंने दिखाया।
3) राजमाता जी के जीवन से तो हम बचपन से ही वाकिफ हैं। शुरू से ही देखते आये उनके अंदर की भक्ति-भावना, सबके लिए प्रीत-प्यार, इज्जत, सत्कार।
बाबाजी ने खुद कहा कि उनकी पूरी Life एक शहनशाह जी वाला मिशन थी। उन्होंने हर रिश्ता बहुत अच्छी तरह से निभाया पर हमेशा गुरु के रिश्ते को पहल दी।
4) हम भी क्या उन पुरातन महापुरुषों की सिखलाईयों पर चल रहे हैं या इधर-उधर की बातों का असर ग्रहण करके हमारी भक्ति हमारा विश्वास पल में डोल जाता है?
जैसे वो कहते हैं- 'पल में तोला पल में मासा।'
कहीं ऐसा विश्वास तो नहीं है हमारा?
लोगों की बातों में इधर-उधर आके हम संगत से दूर हो जाएं या असर उनकी बातों का ले लें।
लोगों का क्या कहना, हंसो तो वो कहते हैं हंसते क्यों हैं, रोओ तो बोलते हैं ये तो रोते ही रहते हैं, हमने ऐसी बातों में नहीं आना।
5) आपने एक उदाहरण संगत में अनेकों बार सुना कि एक बाप-बेटा थे, उनके पास एक गधा था और उन्होंने कहीं जाना होता है तो बाप बेटे को गधे पर बिठाकर, खुद रस्सी पकड़कर गधे की, चलना शुरू हो जाता है। उन्हें कोई देखता है तो कहता है- कैसा बेटा है, बाप की उम्र का लिहाज नहीं कर रहा, खुद ऊपर बैठ गया है और बाप को पैदल चला रहा है। यह सुन के बेटा नीचे उतर जाता है और अपने बाप को ऊपर बैठा देता है। थोड़ा ही आगे जाते हैं तो लोग कहते हैं कि- कैसा बाप है, छोटे बेटे को पैदल चला रहा है और खुद ऊपर बैठा है।
जब ये उनको सुनाई देता है तो वह दोनों ही ऊपर बैठ जाते हैं। इतनी देर में कोई और आगे से कह देता है कि जानवर का बिल्कुल लिहाज़ नहीं है इनको, खुद दोनों ऊपर बैठे हैं और उसके ऊपर जानवर पे इतना वज़न डाला हुआ है। वह दोनों ही नीचे उतर जाते हैं और रस्सी पकड़कर आगे चलना शुरु करते हैं तो लोग मजाक उड़ाते हैं कि- देखो जी जानवर है, फिर भी पैदल जा रहे हैं।
6) जो गुरमुख होते हैं, वो ऐसी बातों में नहीं आते, बल्कि हमेशा यही अरदास करते हैं-
'इतना काबू हो तेरा मेरे पे कि,
मैं अगर बुरा चाहूं भी तो किसी का बुरा कर ना पाऊँ।'
और अगर हम लोगों की बातों में आते हैं तो उनको, दूसरों को, नुकसान पहुंचाने के लिए कई बार हम कोशिश करते हैं। तो एकदम बेकल जी की वो लाइनें-
'घर अपना फूंक देते हैं गैरों का मान के,
लेते हैं यूं इंतकाम अपने आप से लोग।'
7) अभी आपने एक वो मछली वाला example बाबाजी से सुना कि- छोटे से दायरे में रहती है, इस करके जब उसको समंदर में डाल देते हैं तब भी वो समुंदर की गहराई का आनंद नहीं लेती।
दूसरी और एक और मछली है उसको समुंदर में जब डाला जाता है तो वो अपनी आजादी का नाजायज़ फायदा उठा लेती है और समुंदर को cross करके आगे बढ़के किनारे पे पहुंच जाती है। जब वो किनारे पे पहुंचती है तो फिर जो उसका नुकसान होता है, उस नुकसान से उसको कोई नहीं बचा पाता।
8) हमने अब देखना है, हम उन पुरातन महापुरुषों की तरह सेवा-सिमरन-सत्संग कर रहे हैं या अपनी किसी convenience के according सत्संग-सेवा-सिमरन करते हैं?
अभी हमने ये भी सुना बाबाजी के प्रवचनों में कि-
'इतनी आज़ादी दे मुझे कि मैं तेरी कैद में रह सकूं।'
9) निरंकार से यही अरदास है कि इसकी कैद में रहके कभी हमारा विश्वास ना डोले, इसकी कैद में रहके हम इस मिशन को आगे से आगे बढ़ा पाएं।
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी।